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आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास, यह लो, करते ही रहते हैं ...